कभी किसी मोड़ पर मिल जाओगे यही सोच कर।
हर नए मोड़ पर ठिठक जाता हूं यही सोच कर।।
वो जो मेरा ना हुआ तो होगा किसका।
रहता हूं परेशान दिन रात यही सोचकर।।
जो ठिकाना ही ना होगा तो कहां मैं दरबदर भटकूंगा।
सजाता हूं सलीके से अपना आशियाना यही सोचकर।।
तुम मेरे दिल अजीज और मैं तुम्हारा हूं मुरीद। आओ मिटा दें सारे अपने झगड़े यही सोचकर।।
वो जहां रहे खुश रहे,आबाद रहे ।
भूल गया मैं उसे बस यही सोचकर।।
मिलता तो है वो मुझे अक्सर पर एक अजनबी सा।
ना था मंजूर खुदा को, लब सिल लिए यही सोचकर।।
जब दिलों में है सबके रहता वो ही परवरदिगार।
छोड़ दी "उस्ताद" ने बुत की इबादत यही सोचकर।।
@नलिन #उस्ताद
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