जुल्फ बिखरी लगती भली हैं लोगों को उसकी।
फुर्सत कहां तकलीफ मगर देखने को उसकी।।
भुलाने को तो उसे भुला दिया ज़माने के लिए। तस्वीर दिल से कभी मिटा ना पाया वो उसकी।।
सरेआम ही लुट रही थी इज्जत मगर देखो।
वहां किसको पड़ी सुने चीख पुकार जो उसकी।।
बदलता है गिरगिट की तरह रंग ये आदमी। पढेगा क्या खाक भला तू सोच को उसकी।।
वो लाख कहे तुझमें मुझमें फर्क नहीं जरा भी।
हरकतें मगर करती हैं जाहिर नफरतों को उसकी।।
"उस्ताद" तुम भी कहां किस जमाने में जी रहे हो।
दिल से भला लगा रहे क्यों अफवाहों को उसकी।।
@नलिन #उस्ताद
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