मेरी हकीकत तो बस चंद ही जानते हैं।
आलिम,काबिल हूं कुछ नहीं राम जानते हैं।।
मीडिया ने सिखा दिया है हुनर सबको।
अब तो सब खुद को बेचना जानते हैं।।
जैसा लिखाया वैसा ही लिख दिया हमने।
यूॅ कुपढ* खुद को सुखनफहम*मानते हैं।।
*अनपढ *विद्धान
जाते हैं रास्ते सारे एक ही मंजिल पर।
लोग जानते हुए भी मगर कहाॅ मानते हैं।।
सोना,चांदी कीमती असबाब तौलते रहे जो दिन भर।
कहां वो भी कीमत इंसानियत की लगाना जानते हैं।।
प्यार का मयखाना छलकता है जिनके दिलों में।
खुदा की खुदाई तो वो ही असल जानते हैं।।
खुद ही जोड़कर तख़ल्लुस "उस्ताद" का देखो।
बेहया वो तो बस अपना नाम चाहते हैं।।
@नलिन #उस्ताद
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