हर तरफ पक रही अलग-अलग सबकी खिचड़ी।
पप्पू की जरा भी मगर नहीं पकी खिचड़ी।।
तबीयत माशाअल्लाह वो ही जोशे जवानी।
रंगत चाहे बाल की हो तो हो बाकी खिचड़ी।।
यूं तो है मुफीद बड़ी सेहत को ये सब के लिए।
जायका मगर करती बेस्वाद अधपकी खिचड़ी।।
खाने को छप्पन भोग यूं तो मिलते रहे यहां।
दुनियां में सारी अब तो छा गयी बांकी खिचड़ी।।
दही,मूली,घी,अचार संग छनती है यारी।
है साथ इनके तो जुबां में जा चिपकी खिचड़ी।।
दाल,चावल सब पसन्द का अपना मिलाकर।
आज हम सबने खूब मेल से छकी खिचड़ी।।
खानी तो पड़ेगी अब तुम्हें भी "उस्ताद"जी।
ऐसी आसां बड़ी है बनाना हलकी खिचड़ी।।
@नलिन #उस्ताद
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