वह यहां,वहां,बता तो सही कहां है नहीं।
ढूंढता ही बस उसे आदमी शिद्दत से है नहीं।।
दीदारे उम्मीद से लगे हैं लोग चौखट बांके बिहारी।
करम मेहरबानी ऐसी मगर हमसे पर्दादारी है नहीं।।
पारखी उससे बड़ा जौहरी भलाऔर कौन होगा।
चुन लिया मुझ सा संगदिल तो कहीं ऐतराज है नहीं।।
सांस लेते छोड़ते हैं हम कितने बेपरवाह होकर।
चैन की सांस मगर वो हमारे लिए लेता है नहीं।।
हर दिन न जाने कितनी बार वह इनायत करता है।
मगर एहसान फरामोश हमसे शुक्रिया निकलता है नहीं।।
"उस्ताद"जानता है वो बात हम सबके दिलों की।
लेने में मजा पर चुपचाप उसका कोई सानी है नहीं।।
@नलिन #उस्ताद
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