बाल दिवस पर सभी को बधाई देते हुए गुलाटी मारती हुई एक ग़ज़ल:
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अपने भीतर बच्चे को जगाते रहिए
खुद को भी लोरियां सुनाते रहिए।
कागज की कश्ती बरसात में तैराकर
सैर में बचपन की जाते रहिए।
चूं-चूं करते परिंदों का मधुर कलरव
साथ हॅस बोल गुनगुनाते रहिए।
कैरम,ताश,पतंग,कंचे,लूडो कुछ भी
पुराने शौक खुद को खिलाते रहिए।
हंसी-ठट्टा,वही मौज-मस्ती,छीना-झपटी
बच्चे बन आप ही इतराते रहिए।
गुलाटी मार,नाज-नखरा दिखाकर कभी
धींगामुश्ती,धूप-बरसात दिखाते रहिए।
"उस्ताद"बहुत आलिम बन क्या करोगे
हरकतें बचकानी दोहराते रहिए।
@नलिन #उस्ताद
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