पहल कर आगे दो कदम बढ़ाने में मगर हर्ज़ क्या
पौंछ उसके आंसू साथ निभाने में मगर हर्ज़ क्या।
पौंछ उसके आंसू साथ निभाने में मगर हर्ज़ क्या।
अच्छा है चूम रहे हो नित नए आसमान तुम
फूले फले दरख़्त सा झुकने में मगर हर्ज़ क्या।
माना नक्कारख़ाने आवाज तूती की रहती अनसुनी
पुरज़ोर एक बार ताकत लगाने में मगर हर्ज़ क्या।
समीकरण बैठा,जोड़-तोड़ बहुत खोया,पाया कहाँ
बांध मस्तूल,पाल उसका कश्ती खेने में मगर हर्ज़ क्या।
नेट पैक है पूरा पड़ा, पॉवर बैंक से भी तू जुड़ा हुआ
दरिया-ए-वेबसाइट खुदा की डूबने में मगर हजॆ क्या
भरने को ऊॅची उड़ान माना तेरी कूवत है नहीं
जिस हाल हो उस हाल मुस्काने में मगर हजॆ क्या।
दूर से दिखता हो "उस्ताद" चाहे रूखा सा सही
पास आकर उसे आजमाने में मगर हर्ज़ क्या।
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