भ्रम में भी जीना पड़ता है
झूठ को सच कहना पड़ता है।
पूछे कोई हाल तो अपना
हंसना हमको पड़ता है।
ख्वाबों को रंगने के खातिर
कितना कुछ सहना पड़ता है।
भटके जंगल,पवॆत,दरिया
वो तो पर भीतर मिलता है।
देख किसी की रोनी सूरत
भीतर कुछ रिसने लगता है।
अंतर्मन उसमें लग जाए
खिला"नलिन"सा लगता है।
जीने को दो बूंद जिंदगी
"उस्ताद"हलाहल पीता है।
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