हिन्दी का कमॆकाण्ड तो हर साल हो रहा
बाजार अंग्रेजी का मगर बम-बम हो रहा।
गिटपिटाना नवजात घुट्टी में पी रहे सभी
मादरे-जुबां हिकारत भरा नाम हो रहा।
बुद्धिजीवी हर कोई बिकने लगे अब तो
जाने कैसी आजादी का सवाल हो रहा।
जीते जी माॅ-बाप को पानी न दे सके जो
स्वाथॆ के चलते उनके घर श्राद्ध हो रहा।
मासूम के साथ दरिन्दगी कैसे लिखें कहो
पत्थर दिल कलेजा कितना आम हो रहा।
काबिल"उस्ताद" होना अब आसान नहीं
आरक्षित हर गधे का सम्मान आम हो रहा।
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Wednesday 13 September 2017
काबिल उस्ताद होना अब आसान नहीं
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