हम भी तेरे शहर के बाशिन्दे रहे हैं
ये अलग बात अभी तक तन्हां रहे हैं।
चुप रहने से आवाज खो गयी हमारी
इशारों से समझें पर कितने रहे हैं।
आसमाॅ तक फैले,सागर से गहरे
किस्से तुम्हारे खूब मिलते रहे हैं।
बहुत दूर की लाए कौड़ी"उस्ताद"
पर डिजिटलअब रिश्ते हो रहे हैं।
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