अक्सर सांपों को हमने,दूध पिला कर देखा है
ये जज्बा भी हमने,खूब निभा कर देखा है।
लेकिन आंखिर कब तक,हमने क्या कुछ सोचा है
इन नमक-हरामों के चलते,क्या कुछ न खोया है।
बहुत हुयी इनकी गद्दारी,अब तो दंड ही देना है
आहुति जनमेजय बनकर,यज्ञकुंड बलि देना है।
अब समूल विषग्रंथि को,नष्ट सदा को करना है
न हो ऐसा षडयंत्र कभी,हमें कमर को कसना है।
वतन,झन्डा और संविधान सबसे ऊपर रखना है
नयी नस्ल को हमने अपनी,जागरूक ही रखना है।
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