भीतर जबसे लौ उसकी लगी है
गणेश-परिक्रमा कम होने लगी है।
हर तरफ दिखने लगा है वो ही
इश्क की शुरूआत होने लगी है।
दिल में मासूमियत हो जिसके
कदर उसकी बढने लगी है।
गुजरे जो दिन राजी-खुशी से
समझो कोई नेकी लगी है।
जबसे"उस्ताद" की संगत रहे
हर दिन महफिल सजने लगी है।
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