Monday, 25 August 2025

670: ग़ज़ल:: परिंदों को पिंजरे में पालने का शौक न हुजूर पालिए।

परिंदों को पिंजरे में पालने का शौक न हुजूर पालिए।
घोंसला लगाएं या बेहतर रहे जो एक दरख़्त लगाइए।।

कड़ी मेहनत से इनको कहां भला कभी गुरेज रहा है।
अपनी बुरी आदतें खुदा के वास्ते इन पर न थोपिए।।

भोर होने का ऐलान करते जो घर-घर जाकर पुरजोर हैं।
मसनदे-लुत्फ छोड़ आप भी गुलाबी आसमां निहारिए।।

रंजोगम दिखता है कहिए भला कब इनके कलरव‌ में।
लाजवाब करतब आप इनके हर दिन मौज से देखिए।।

एक-एक दाना भी चुगते हैं सेहत का लिहाज़ रखकर।
जिंदगी जीने का शऊर "उस्ताद" अब इनसे सीखिए।।

नलिन तारकेश "उस्ताद"