Monday, 15 September 2025

जब भी जलतरंग सी वो हंसती है।

जब भी जलतरंग सी वो हंसती है।

सच में कहूं बहुत अच्छी लगती है।।

नीले गगन में उड़ते उन्मुक्त पंछी सी।

पल भर में वो उड़ना सिखा देती है।।

कौन कहता है ये पत्थर पिघलते नहीं।

नाम लेकर जब भी वो तुम्हें बुलाती है।।

बेशक जिंदगी के रास्ते हैं टेढ़े-मेढे़ बहुत।

कांटों में भी मगर हंसना वही सिखाती है।।

कभी चलो एक कदम बस उसकी तरफ।

पंखुरी सा हरेक रहस्य खोलती जाती है।।

नलिन "तारकेश" १४/९/२५ रविवार (हिन्दी दिवस पर)

Monday, 25 August 2025

670: ग़ज़ल:: परिंदों को पिंजरे में पालने का शौक न हुजूर पालिए।

परिंदों को पिंजरे में पालने का शौक न हुजूर पालिए।
घोंसला लगाएं या बेहतर रहे जो एक दरख़्त लगाइए।।

कड़ी मेहनत से इनको कहां भला कभी गुरेज रहा है।
अपनी बुरी आदतें खुदा के वास्ते इन पर न थोपिए।।

भोर होने का ऐलान करते जो घर-घर जाकर पुरजोर हैं।
मसनदे-लुत्फ छोड़ आप भी गुलाबी आसमां निहारिए।।

रंजोगम दिखता है कहिए भला कब इनके कलरव‌ में।
लाजवाब करतब आप इनके हर दिन मौज से देखिए।।

एक-एक दाना भी चुगते हैं सेहत का लिहाज़ रखकर।
जिंदगी जीने का शऊर "उस्ताद" अब इनसे सीखिए।।

नलिन तारकेश "उस्ताद"