Wednesday, 28 December 2016

शिवांश हैं हम जन सभी


शिवांश हैं हम जन सभी 
उस दिव्य परम पुरुष के। 
अतः हम क्यों सोचें कभी 
योग्य नहीं परम सत्य के। 
छिति,जल,पावक,गगन,समीर 
पंचभूत रचित हुई हमारी रचना।
जो सब उसकी ही तूलिका से 
है विलक्षण रची एक योजना।
आत्म तत्व तो उसी का है हममें 
चेतना का तेजोमय आलोक भरता। 
वही जब समाहित होता उसमें 
तो जगत है उसको मृत्यु कहता। 
पर वो तो है दिव्य मिलन
आत्मा और परमात्मा का।
अतिथि बन,कुछ देर घूम-टहल 
वापस अपने मूल निवास जाने का। 
अतः इस यात्रा को क्यों हम ढोयें भला 
परमोत्सव की तरह क्यों न चलते रहें।
जो भी है उसकी योजना हमारे प्रति 
आओ उस सोच को बस पूरा करतें रहें। 

Monday, 26 December 2016

गजल-52 "उस्ताद" वो नेमत ही है, माना कीजिये



बढ़ती उम्र से न कभी परेशां हुआ कीजिये।
अपने दिल को बस बच्चा ही रखा कीजिये।।

आवाज में दर्द होता हो तो हुआ करे आपके।
फुरसत निकाल कुछ गुनगुनाया कीजिये।।

ये दुनिया तो मतलबी रही है सदा से यूँ ही।
भाव उसको न ज़्यादा कभी दिया कीजिये।।

रास्ते कठिन हैं डगर के हर कदम दर कदम
हर सांस बस खुद पर यकीं किया कीजिये।।

बदलते हैं घूरे के दिन भी कभी न कभी तो।
खुदा पर भी थोड़ा ऐतबार किया कीजिये।।

जो हुआ,हो रहा या जो होगा आगे कभी।
"उस्ताद" वो नेमत है,सुन लिया कीजिये।।