व्यक्तिगत रूप में मुझे संत शिरोमणि "तुलसीदास जी" द्वारा रचित "श्री रामचरितमानस" से बढ़कर श्रेष्ठ ग्रंथ अन्य कोई लगता ही नहीं है। कारण सीधा सा है कि एक रूप में यह इतना सहज,सरल,सीधा-साधा,समझ में आने वाला ग्रंथ है कि अल्पबुद्धि मुझ जैसे लोगों को भी इसमें रसानंद की अनुभूति(फिर चाहे अल्प ही), स्वतः अवश्य ही हो जाती है।भक्ति मार्ग के साधकों के लिए तो यह अमृततुल्य है ही, श्रीहरि के पुनीत चरणोदक जैसा।इसमें ही अरण्यकांड (तीसरा सोपान) के अंतर्गत भक्तिमति देवी शबरी के साथ संवाद में श्रीराम ने नवधा भक्ति का जो उपदेश दिया है वह अत्यंत लोकप्रिय है।कुछ प्रभु की कृपावश ज्योतिष में रुझान के चलते इसका जब तारतम्य जांचने लगा तो विचार आया कि भक्तजन यदि चाहें तो ज्योतिष के मानक/सूत्रों के हिसाब से भी अपने जीवन में इसका सटीक चुनाव कर सकते हैं जो कि उनके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है।हमारे शास्त्रों में भक्ति 9 प्रकार की स्वीकार की गई है।
श्रवणं, कीर्तनं, विष्णोः स्मरणम, पादसेवनं।
अर्चनं, वंदनं, दास्यं, सख्यमात्म निवेदनम्।।
जैसा कि हम जानते हैं ज्योतिष का ज्ञान हमें अपने भूत,वतॆमान,भविष्य का सम्यक ज्ञान प्रदान कराने वाला दैवीय विज्ञान है और इसका वास्तविक उपयोग भी यही है कि इसे हम आत्मनुभूति के लिए अधिक काम में लाएं न की भोग-विलास की प्राप्ति सम्बन्धित जिज्ञासाओं के समाधान हेतु।
जैसा कि हम जानते हैं कि अंक ज्योतिष में 9 अंकों का विशेष महत्व है।इसके द्वारा हम अपनी जन्म तारीख से मूलांक व जन्म तारीख,जन्म माह,व जन्म वर्ष के जोड़ द्वारा भाग्यांक निकालकर भविष्य का सटीक विवेचन कर पाते हैं। उदाहरणार्थ जन्म विवरण यदि 29/10/2019 है तो इसमें मूलांक 2+9=2 होगा।
वहीं भाग्यांक 2+9+1+0+2+0+1+9= 6 होगा। मूलांक,भाग्यांक का हमारे व्यक्तित्व में बड़ा योगदान रहता है।
इसी प्रकार नौ ग्रहों सूर्य,चंद्र,मंगल,राहु,बुध,शनि,केतु,बृहस्पति,शुक्र
का 9 अंकों से सीधा संबंध स्थापित किया गया है।तो क्यों न हम अपनी मूल प्रकृति को अंकों/ ग्रहों के स्वभाव द्वारा समझ-बूझ कर अपने लिए नवधा भक्ति का चुनाव करें जो हमारे लिए बहुत लाभदायक रह सकता है।
अंक ज्योतिष के अनुसार अंकों का ग्रहों से जो संबंध है उसकी चर्चा अब हम करते हैं।जैसे 1 का अंक सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, 2 का अंक चंद्रमा का,3 का अंक बृहस्पति का,चार का अंक राहु का,5 का अंक बुध का,6 का अंक शुक्र का,7 का अंक केतु का, 8 का अंक शनि का और 9 का अंक मंगल का प्रतिनिधित्व करता है।
सामान्यतः हम सभी जानते हैं कि सूर्य(1 अंक) ग्रह- तेजस्विता, स्थिरता,दृढ़ता,आत्मा का कारक है और हमारे अहम् को भी दर्शाता है। इसी प्रकार चंद्र (2 अंक)ग्रह - चंचलता,मनन-विचार करने वाला संवेदनशील होता है ।बृहस्पति (3अंक) ग्रह- सेवाभावी, ज्ञानवंत, आज्ञाकारी, निष्ठापूर्ण होता है।राहु (4अंक) ग्रह - संघर्षशील,विचरण करने वाला,मिलने-जुलने में रूचि रखने वाला होता है।
बुध (5अंक) ग्रह- ढुल-मुल स्वभाव ,संगत का गहरा असर पड़ने वाला होता है।शुक्र (6अंक) ग्रह- भोग विलास के संसाधनों में स्वछंदता/प्रीति का, केतु (7अंक) ग्रह- रहस्यात्मक्ता, समाज से अलग स्वयं को सीमित रखने वाला होता है।शनि (8अंक) ग्रह-दुःखी, असंतोषी/आत्मसंतोषी,गंभीर और एकाकी जीवन के प्रति लगाव वाला होता है।मंगल (9अंक) ग्रह- अपने बाहुबल से आत्ममुग्ध,बेपरवाह,अनियंत्रित सा व्यवहार करने वाला होता है।
तुलसीदास जी ने जो क्रम अपनी रामचरितमानस में नवधाभक्ति का अरण्यकांड के अंतर्गत दिया है वह अगर हम देखें तो लगता है कि वह ज्योतिष के सूत्रों से सामंजस्य को वास्तविक रूप में स्थापित करते हुए ही लिखा गया है। यूं हम जानते ही हैं कि तुलसीदास जी ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे तो यह आश्चर्य का विषय भी नहीं है। अब हम श्रीरामचरितमानस में नवधा भक्ति (दोहा 34 से 36 के मध्य)को पढ़ते हैं।इसमें लिखा है- "प्रथम भगति संतन कर संगा" अर्थात् संतों का संग करना चाहिए उनका आशीष लेना चाहिए और सेवा करनी चाहिए ।अब यदि इसे हम भाग्यांक और मूलांक 1अंक/सूर्य ग्रह से संबंधित करके देखें तो हमें यह बिल्कुल सटीक लगता है क्योंकि इसमें सूर्य के जैसे संतों का ,जो निर्विकार भाव से सभी के लिए आलोक प्रदान करने को प्रस्तुत रहते हैं उनकी ही सेवा की बात करता है। दूसरी भक्ति में "रति मम कथा प्रसंगा"-यहां पर श्री हरि कथा से प्रेम उसका बार-बार पठन-पाठन व निदिध्यासन की बात कही गई है जो कि 2 मूलांक व भाग्यांक /चंद्र ग्रह से प्रभावित चंचल,अधिक विचार करने वाले, संवेदनशील स्वभाव वालों के लिए बहुत ही उपयुक्त प्रतीत होती है।तीसरी भक्ति जो है उसमें "गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान" यानी कि निराभिमानी होकर अपने गुरु के चरण कमलों की सेवा उनकी आज्ञा अनुसार जीवन यापन करना है। यहां हम देखते हैं कि बृहस्पति ग्रह को गुरु भी कहते हैं।अतः यह भी बहुत उपयुक्त लगता है।चौथी भक्ति "मम गुन करइ कपट तजि गान"- जो बात कही गई है वह राहु ग्रह से संबंधित है जो कि खुद को चतुर मानते हैं और बावजूद इन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता है। लोगों से मिलने-जुलने की प्रवृत्ति रखने वाले 4 अंक के लोगों को अतः श्रीहरि के गुणों का बिना छल-कपट के स्वार्थ रहित हो लोगों के मध्य कहना, उसका प्रचार-प्रसार करना उपयुक्त भक्ति कही जा सकती है।"मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा ।पंचम भजन सो वेद प्रकासा" इसमें 5 वीं भक्ति को जो क्योंकि बुध ग्रह से संबंधित हो जाती है अतः इसमें व्यक्ति अपने ढुलमुल स्वभाव और संगत के गहरे असर को सही रूप में लेते हुए सात्विक प्रकृति के लोगों के संग को बनाते हुए दृढता पूर्वक सिद्ध मंत्रों द्वारा जैसे "ओम नमः शिवाय", "ओम नमो भगवते वासुदेवाय",आदि द्वारा अपनी भक्ति को सही राह दिखा सकता है।"छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धर्मा" इस छठवीं भक्ति के माध्यम से हम शुक्र ग्रह का संबंध स्थापित करते हैं। क्योंकि शुक्र इन्दिय जनित भोग-विलास और इंद्रिय-सुखों का कारक है तो इसमें हमें इस प्रकार की प्रवृत्ति रखनी चाहिए जिससे कि हम इंद्रिय निग्रह यानी कि सुंदर चरित्र वाले कार्यों को करें और सज्जन व्यक्ति के लिए जो मान्य आचरण है उसका व्यवहार करें। सातवीं भक्ति में "सातवँ सम मोहि मय जग देखा।मोते संत अधिक कर लेखा।।" में हम केतु ग्रह के अनुरूप कह सकते हैं कि "सीय राम मय सब जग जानि" या कहें जगत को राममय देखना और संतों को श्रीहरि से भी अधिक सम्मान देना उपयुक्त लगता है।8 अंक के मूलांक वाले या की भाग्यंक वाले लोगों के लिए कहा गया है कि "आठवँ जथालाभ संतोषा।सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा।।" इसमें कहा है कि शनि ग्रह से प्रभावित व्यक्ति को सभी स्थितियों अपने को प्रसन्न रखते हुए कार्यों को करना चाहिए। तो वह अष्टम भक्ति को सहजता से पुष्ट करते हुए आत्मिक उन्नति कर सकता है। और अंत में "नवम सरल सब छलहीना।मम भरोस हिय हरस न दीना।।" इसमें नवीं भक्ति जो मंगल ग्रह से संबंधित है यानि कि 9 नंबर से तो उसमें व्यक्ति को अपने बाहुबल से लोगों की मदद करनी चाहिए तथा बिना किसी भेदभाव के और साथ ही साथ निष्कपट रह कर हर्ष व दैन्य/दीनता कि अति से बचते हुए सहज, सामान्य हो जीवनयापन करना चाहिए जिससे कि उसका भक्ति मार्ग में सरलता पूर्वक पथ प्रशस्त हो सके।
अन्त में, यदि आपका मूलांक, मूल्यांकन एक ही है तब तो उस भक्ति प्रकार को आप द्वारा अपनाया जाना तो हर प्रकार से उत्तम है।वहीं मूलांक अलग और भाग्यांक अलग हो तो इसका आशय यह है कि आपको इनसे संबंधित दोनों प्रकार की भक्ति मार्ग का अवलम्बन लेना चाहिए।
वैसे यह लेख तो सिर्फ भक्ति मार्ग में आकर्षण बढ़ाने हेतु स्वान्तः सुखाय ही लिखा गया है।लेकिन अगर इससे किसी अन्य साधक का भी मन खिंचे,श्रीहरि जी (ईश्वर) की ओर तो यह आनन्द का ही विस्तार है।
卐 ॐ तत् सत् ॐ 卐
नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर सभी को समर्पित।
@ नलिन पाण्डे "तारकेश"