512/20:
जब भी तेरा जिक्र करता हूं।
दिल में अपने सुकूं देखता हूं।।
बहुत दिनों बाद आज आई है धूप।
छत में औंधे पड़े कमर सेकता हूँ।।
खनक सुनी जो उसकी सदा*में।*आवाज़
मिल गयी मंजिल समझ गया हूं।।
हर दिन की गहरी मशक्कत के बाद।
बस एक अदद यार इतवार ढूंढता हूं।।
सारे जहां में खिलें गुल हर जगह ही।
कांटों का ताज तभी सर पहनता हूं।।
भरने की ख्वाहिश है उड़ान बहुत ऊँची।
सो"उस्ताद"परिन्दों से पंख रखता हूँ।।
@नलिन#उस्ताद
No comments:
Post a Comment