वो आए भी तो माघ*में बरसात लेकर।*जनवरी माह
ठिठुरते मौसम अजब हालात लेकर।।
मलाई आरक्षण की मुफ्त में खाकर।
कर रहे मुल्क कमजोर खैरात लेकर।।
पढ़ा ही नहीं या खुदा जाने दिल में चोर है।
धरना दिए हैं बेफजूल बस सवालात लेकर।।
दूर-दूर तक मौजूं*ही नहीं जब टकसाली**इनकी।
*तथ्य **प्रमाणिकता
भड़काते फिर रहे हैं लोग महज जज्बात लेकर।।
सहरे रौशनी को जब खींचके लाए हैं आफताब सब।
उस्ताद जाने अड़े हैं क्यों कुछ लोग रात लेकर।।
@नलिन#उस्ताद
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