कैक्टस में हैं फूल खिल रहे जरा सोचिए।
संवारता वो हुनर कैसे-कैसे जरा सोचिए।।
सांसे चलती कितने सुकून से जनाब कभी सोचा।
वहीं जब दो घड़ी को मुश्किल पड़े जरा सोचिए।।
हेकड़ी पाली जब तलक रहे जिस्मो जान।
पूछेगा कौन मरने के बाद ये जरा सोचिए।।
सूरज,चांद,सितारे रहते हैं चुपचाप मशरूफ।
कामयाबी हम जरा सी इतराते जरा सोचिए।।
जहां जाएंगे आयेगा दबे पांव नसीब भी वहीं।
हर वक्त बस यही कदम रखते जरा सोचिए।।
खुदा ए फजल से ही होते हर काम छोटे-बड़े।
नजूमी*वरना कैसे बता सकते जरा सोचिए।।*ज्योतिषी
धूप-छांव तो बस एक खेल है कुदरत का।
"उस्ताद" रख कुछ फासले जरा सोचिए।।
@नलिन#उस्ताद
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