जागो-जगाओ,अपने भीतर में जीजिविषा एक नई।
यूँ थक-हारकर न बैठो,खोजो मंजिल अब एक नई।।
कठिन हैं रास्ते सफर के,ये तो पता ही है सबको।
फौलादी सोच मगर,बरकरार रखो भीतर एक नई।।
डूब कर गहरे,जो भी खोजता है अपने लक्ष्य को।
पाता है सब कुछ वो,उम्मीद जो रखता एक नई।।
सुबह से रात तक,दौड़ते निरंतर रहते हैं अश्व सूर्य के।
थकते हैं वे कहाँ-कब,दिशा-अनुसंधान करते एक नई।।
असंभव कुछ नहीं इस जग में,बस जो ये मान के चलो।
सोच रखनी होती है हमें,सदा सकारात्मक और एक नई।।
@नलिन #तारकेश
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