सोचता हूँ मैं यूँ ही तो नहीं आया हुंगा भला जमाने में।
किसी का कर्ज उतारना,चढ़ाना रहा होगा जमाने में।।रोशनी बाँटने को मशाल मजबूत जिस हाथ में थमाई थी। बुझा कर उसने न जाने क्यों पकड़ ली हंसिया जमाने में।।
जाओ तो कहते हैं गुस्ताखी न करो आरामरखाने आने की।
जाएँ नहीं तो कहते ढिढोरा पीटें बुलाने को क्या जमाने में।।
कितना संजीदा,मासूम,सादगी भरा,अलहदा दिखता है।
कत्ल करने निकलता है जब हुस्ने यार मेरा जमाने में।। आलिम-फाजिल जितने तथाकथित जो घूम रहे यहाँ।
चलन आँख,कान मूंदकर चलने का बढ़ रहा जमाने में।।
उसे भी तो गहरी लत लगी है फसाने रोज़ नए गढ़ने की।
कहाँ वो आसानी से है भला जीने,मरने देता जमाने में।। टूटे प्याले औ बिखरी शराब मिली मयकदे की तफ्तीश में।
बेवजह अब बदनाम "उस्ताद" हुआ तो हुआ जमाने में।।
@नलिन#उस्ताद
No comments:
Post a Comment