जाएँ कहाँ मगर हम उनकी याद छोड़ के।
दूर-दूर तक पसरा सन्नाटा आज चारों तरफ
दिखता नहीं कुछ भी यहाँ तो अँधेरा छोड़ के।
गम और ख़ुशी तो खेल बस परवरदिगार का
उलझे रहते ता-उम्र मगर हम होश छोड़ के।
पिलाओ दूध चाहे कितना भी तुम सांप को
बाज़ कहाँ आता मगर वो डसना छोड़ के।
दो लाख टाॅफी,खिलौना बच्चे के हाथ में
आता कहाँ वो माँ-बाप का पल्लू छोड़ के।
कौन कब किसका हुआ यहाँ भला धूप छाँव में
"उस्ताद"हर शख्श कमज़र्फ खुदा को छोड़ के।