जब भी जलतरंग सी वो हंसती है।
सच में कहूं बहुत अच्छी लगती है।।
नीले गगन में उड़ते उन्मुक्त पंछी सी।
पल भर में वो उड़ना सिखा देती है।।
कौन कहता है ये पत्थर पिघलते नहीं।
नाम लेकर जब भी वो तुम्हें बुलाती है।।
बेशक जिंदगी के रास्ते हैं टेढ़े-मेढे़ बहुत।
कांटों में भी मगर हंसना वही सिखाती है।।
कभी चलो एक कदम बस उसकी तरफ।
पंखुरी सा हरेक रहस्य खोलती जाती है।।
नलिन "तारकेश" १४/९/२५ रविवार (हिन्दी दिवस पर)