Sunday, 27 June 2021

355: गजल- बहुत फूक फूक

बहुत फूक फूक तुम हर लफ्ज़ बोलना। 
सांस भर उसे फिर अच्छी तरह तौलना।।

जमाने के नए अंदाज से,होगे तुम भी वाकिफ।
कहता हूँ तभी,हर कदम सोच समझ रखना।।

हर बात का बतंगड़ बनाने में,माहिर हैं यहाँ लोग।
जरूरी नहीं है बिल्कुल,पलट अपनी बात कहना।।

काम से काम बस अपना,शऊर से करते हुए।
हो सके जितना भी,प्यार ही प्यार बांटते रहना।।

इन्हें नसीहतें कहो,या कहो तजुर्बे "उस्ताद" के।
जो कहो,मिले कभी फुर्सत तो इनसे गुजर देखना।।

@नलिनतारकेश 

354:गजल कोविड-19 महामारी

पहले ही लोग कतराने लगे थे मिलने से।
अब लगता सचमुच डर है साथ बैठने से।।

लो मुँह में बांध पट्टी सबने होंठ सिल लिए हैं।
दुआ-सलाम हो रही आहिस्ता बड़े सलीके से।।

घर में कैद था बुढ़ापा अब तो हुई जवानी भी। 
धमाचौकड़ी मचाते हैं कहाँ चुन्नू-मुन्नू सहमे से।।

जश्न,दावतनामे,मौज-मस्ती की बातें अब भूलिए हुजूर।
दरकिनार पड़े हैं ये सब होकर बड़े मायूस ठंडे बस्ते से।।

मुलजिम है कौन,है कौन ये गुनाहों को छुपाने वाला।
हम मुफ्त बेमौत मर रहे जैसे घुन गेहूँ में पिसने से।। 

लोग बिठाएंगे कैसे अजब इन हालातों से तालमेल कहिए।फकीर "उस्ताद" तो देखो बतिया रहे भीतर उतर खुद से।।

@नलिनतारकेश 

Saturday, 26 June 2021

353:गजल-तू सब जानता है

क्या कहें तुझसे तू तो सब जानता है।
फिर भी मेरा ये दिल कहाँ मानता है।।

बार-बार कहने से भी होगा भला क्या
कहता हूँ मगर ये बावजूद सब पता है।।

ऐसा नहीं की करी न हो दिले मुराद पूरी। 
लेकिन बस एक बात हर बार टालता है।।

जो कहता हूॅ आजा सांवरे एक बार तो। 
कहाॅ नहीं हूॅ मैं उल्टे मुझसे ही पूछता है।।

तेरा वजूद करीब होके भी देख पाता नहीं। 
बता ये जाल माया का क्यों नहीं तोड़ता है।।

उम्र आधी तो कट गई बस यूॅही फकत जैसे-तैसे।
रहेगा इंतजार,कब तलक "उस्ताद" यही सोचता है।।

@नलिनतारकेश


Thursday, 24 June 2021

352:गजल :ये जुगत करता हूँ

दिल को बहलाने की खातिर ये जुगत हर रोज करता हूँ।
कभी पुरजोर गीत गाता हूँ तो कभी अशआर लिखता हूँ।।

दर्द तो है गजब का पोर-पोर गहरे धंसा हुआ।
मगर दे उसे चकमा खुलकर मैं जोर हंसता हूँ।।

हवाएं भी कहाँ चुप हैं करती हैं साजिशे मेरे खिलाफ।
जुनून है पर कुछ अजब ऐसा दरवाजे सब खोलता हूँ।।

पूनम की रात है आज तो बिखरी है चाँदनी चप्पे-चप्पे में।
आ न पाएगा वो सताने बस यही सोच मलाल करता हूँ।। 

शुमार हो गया है "उस्ताद" रोजमर्रा की आदत में अब तो।
गले लगा दर्द,गम,तकलीफ सारी बेसाख्ता बस चूमता हूँ।।

@नलिनतारकेश 

Wednesday, 23 June 2021

351:गजल-हर महफिल के

चलो लिखें अफसाने कुछ अपने दिल के।
गमों और खुशियों का दें हिसाब मिल के।।

ख्वाबों को मुकम्मल मंजिल दिलाने की खातिर।
मरते देखे हैं लोग अक्सर हमने तो तिल-तिल के।।

गमों के थपेड़े हमने हर कदम पर हैं सहे।
कहा ना कुछ मगर रहे बस होंठ सिल के।।
 
देखी है जब से झलक जलवाए हुस्न यार की। 
चढा है रंग इश्के हिना का अब कहीं खिल के।। 

शम्मा ये जलती,बुझती हैं तो बस कनखियों से। 
यूँ ही नहीं रहे "उस्ताद" जान हर महफिल के।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 22 June 2021

350: गजल- परवाह नहीं

तुझसे मिलने के सपने लिए फिरते हैं।
ये अलग बात है अभी हम भटकते हैं।। 

हम हार तो मानने से रहे यह तय है। 
परवाह नहीं लोग क्या कुछ कहते हैं।। 

जुनून है हमें खुद से गुजर जाने का।  
रास्ते तो हमें पता है इम्तहां लेते हैं।।

ये भी पता है मंजिल अपने ही भीतर है कहीं।
पर चलो कुछ देर बाहर कदम-ताल करते हैं।।

रास्ते अंजान,सुनसान बस कुछ दूर तलक मिलेंगे। 
चले गर शिद्दत से तो हर हाल "उस्ताद" मिलते हैं।।

@नलिनतारकेश 

349: गजल- तेरा-मेरा रिश्ता

ये तेरा-मेरा रिश्ता कहे कौन क्या है।
कहना इसे बकलम दुश्वार बड़ा है।।

यूँ कहो तो बता भी दें जैसे-तैसे इसे।
बच्चों का खेल क्या ये समझना है।।

जाने कितनी मुद्दतों से बनके साया चल रहे।
उपजे गर कभी रूहे नूर तो भरम मिटता है।।

सफर थका देगा जो खुद से चलोगे तुम।
हर हाल हमें डोर तो उसे सौंप देना है।।

जरा कहिए आपकी हैसियत है ही क्या।
घरौंदा है बस एक रेत का जो टूटना है।।

लबों पर सबके बिखेरो हँसी यार तुम।
मकसद "उस्ताद" तो बस महकना है।।

@नलिनतारकेश

Monday, 21 June 2021

348:गजल - ख्वाब दिखाता क्यों है

तू करीब होकर भी दूर इतना क्यों है।
समझ आता नहीं ये माजरा क्यों है।।

दिल में ही नहीं हर चप्पे-चप्पे मौजूद हूँ मैं।
नजर आता नहीं तो ये झूठ बोलता क्यों है।। 

जब करता है तू सब अपनी सहूलियत से ही।
भला फिर लेता हर बार मेरा इम्तहां क्यों है।।

एड़ियां घिस गईं मेरी मगर नजरे इनायत करता नहीं।
बता तो सही आंखिर तू इतना मदहोश रहता क्यों है।।

पथराई आँखें तेरे वादे को झूठा माने तो भला कैसे।
मुँह फेरते ही अक्सर रंगीन ख्वाब दिखाता क्यों है।।

चाहत है चौखट पर तेरी सजदा करे "उस्ताद"।
अडंगे ये रास्ते में फिर बार-बार डालता क्यों है।।

@नलिनतारकेश 

Saturday, 19 June 2021

गजल 347:बात बनती नहीं

बियाबान में जा कर भी बात कहीं बनती नहीं।
बेचैनी ये दिल की आसानी से कभी मिटती नहीं।।

यूँ तो है शहर भी जंगल मगर कंक्रीट का।
वहशी जानवरों की कमी जहाँ रहती नहीं।।

पलकों में संजोए तो हैं हजारों इन्द्रधनुषी सपने।
यार तकदीर मगर रंग बगैर तदबीर* भरती नहीं।।*मेहनत 

माँ-बाप से बढ़कर दुलारती है वो गोद में अपनी।
कुदरत की मगर फिर भी कदर हमसे बनती नहीं।।

बना लेता है आदमी "उस्ताद" जाने कैसे-कैसे।
रूहे आवाज उसे अपनी ही सुनाई देती नहीं।।

@नलिनतारकेश 

Wednesday, 16 June 2021

346-गजल : समझना प्यार हो गया

मुलायम बिछौना मलमल का जबसे अंगार हो गया। 
ये समझना प्यार तुम्हारा मुकम्मल सिंगार हो गया।।

जिस्म भले झूठे ही खिलखिलाता रहे यूँ ही दिन भर।
भीतर उठे जो हर घड़ी टीस समझना प्यार हो गया।। 

जिस्मानी प्यार बस एक मुकाम है पर वो मंजिल नहीं।
डूबके उससे जो निकला भीगे बिना वही पार हो गया।।

ऐसा नहीं वो जानता न हो दिल की खलबली तेरी-मेरी।
और-और उसका माॅझना बस अंदाजे इकरार हो गया।।

मौसम कड़ी धूप,ऑधी या पुरजोर बरसात का रहे।
अब तो रुकना हमारे कदमों को नागवार हो गया।।

शफक1 रोशनी उसकी जमाले2 पाक3 है जादू भरी इतनी।
बना "उस्ताद" आज शागिर्द उसका जो दीदार हो गया।।

1 क्षितिज पर की लाली 2 सुंदरता 3 पवित्र 

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 15 June 2021

345: गजल दर्द हद से

दर्द हद से जो अपनी बढ़ने लगा।
प्यार का असर लो दिखने लगा।।
चांदनी उतर के जो ऑगन खिलखिलाई।
जमाना ये बेवजह रोशनी से जलने लगा।।
दो कदम ही चले थे अभी तो साथ बस।
असर एक दूजे का हम पर पड़ने लगा।।
कहा नहीं कुछ बस हाथ थाम लिया।
दिल ए गुलशन खुद से महकने लगा।।
ऑखों में लिए खुमारी वो गजब की है आया।
होश "उस्ताद" कहो कहाँ फिर रहने लगा।।

@नलिन तारकेश 

Monday, 14 June 2021

344:गजल- जज्बाए कबीर होना चाहिए

कब तक नजर रखेंगे कहो तो उस पर। 
कुछ तो उसमें भी जमीर होना चाहिए।।
हालात हों चाहे यार कितने मुफ़लसी के हमारे।
जिगर तो किसी भी कीमत अमीर होना चाहिए।।
सफर में अड़चने आती हैं लेने इम्तहां हमारा।
तरकस में निपटने को बस तीर होना चाहिए।। 
पलटने से जुबान बार-बार साख गिरा करती है।
जो कह दिया वह पत्थर की लकीर होना चाहिए।।
यूँ तो कौड़ियों के भाव बिक रहे आलिम आजकल।
"उस्ताद" भीतर तो जज्बा-ए-कबीर होना चाहिए।।

Sunday, 13 June 2021

गजल:343 - बरसात में

हुई जो बरसात भारी तो खुद को भिगा दिया।
बचपन की नादानियां को फिर से जिला दिया।।

गीत गाने तो आते हैं रोज परिंदे छत पर।
आज उनको ही जाकर गीत सुना दिया।।

बनाकर कश्ती कागज की तेरा दी गली में।
उम्र है पचपन की राज खुद से छिपा दिया।।

कुदरत के ऑंचल कितने नायाब रतन जड़े।
मेहरबानी है उसकी जो हम पर लुटा दिया।।

गरजते देखा जब बरसते बादलों को खुल के।
पग बांध नूपुर "उस्ताद" ने मुझको नचा दिया।।

@नलिनतारकेश
 astrokavitarkesh.blogspot.com

342:गजल-- सर खुद का हलाल कर पाता नहीं

सर खुद का मैं हलाल कर पाता नहीं। 
जलवा रब तभी अपना दिखाता नहीं।।
उसकी चाहत में फना होना आसां कहाँ। 
बच्चा मासूम खुद को मैं बना पाता नहीं।।
बातें कर लें चाहे जितनी बड़ी-बड़ी हम। 
ये गुरूर है कि दिल से अपने जाता नहीं।।
यूँ तो चप्पे-चप्पे कायनात में है तू ही तू।
नजरों में जाने क्यों उतर के दिखता नहीं।।
जब तलक खूं नापाक रहेगा एक बूंद भी।
दीदार कभी हमें खुद का रब कराता नहीं।।
"उस्ताद" झुके तो हम सजदे में हजार बार।
कमबख्त दिल ये काबू में मगर आता नहीं।।

@नलिनतारकेश 
astrokavitarkesh.blogspot.com

Saturday, 12 June 2021

गजल:341उफनता है

उफनता है सैलाब आपके दिल तो क्या कीजिए।
ग़ज़ल नहीं तो कुछ अशआर ही लिखा कीजिए।। 

तीर-तुक्के भी यूँ कभी निशाने पर लग जाते हैं। 
गलतफहमी का शिकार बनने से बचा कीजिए।।

मदहोशी की खातिर चढ़ाते हैं क्यों पैग पर पैग।
एक नजर तबीयत से बस खुद को देखा कीजिए।।

मौज-मस्ती सूझती है आपको तो बस चारों पहर।
कभी जमीनी हकीकत से भी रूबरू हुआ कीजिए।।
 
किसी "उस्ताद" को खुदा अपना बनाने से पहले।
वो भी  रहा है उसका ही शागिर्द समझा कीजिए।।

@नलिनतारकेश

Friday, 11 June 2021

गजल -340:ये गलतफहमी

ये गलतफहमी थी लोग चाहते हैं मुझे।
काम पड़ने पर बस पुचकारते हैं मुझे।।

न शर्म,न लिहाज,बेगैरत हैं ये पूरे कसम से।
दुआ,सलाम भी कहॉं बेवजह करते हैं मुझे।।

हर आदमी यूँ गरज की खातिर जिंदा नहीं। 
लोग बस सिमटे अपने दायरे लगते हैं मुझे।।

काली करतूतों में शामिल हैं जितने भी सफेदपोश। 
शफ्फाक* होने का दावा ठोकते वही दिखते हैं मुझे।।*पवित्र 
अमां छोड़ो तुम भी किस का रोना रोते हो अक्सर। 
खुदा भी हैरान है ये दिल में क्यों नहीं देखते हैं मुझे।।

नाचीज की हकीकत से यूँ तो रूबरू है सभी लोग। 
जाने फिर खुशफहमी भला"उस्ताद"मानते हैं मुझे।।

@नलिनतारकेश 

 

Thursday, 10 June 2021

गजल-338:लखनऊ के आज के हंसी मौसम को समर्पित चन्द अशआर==÷÷==÷÷==÷÷==÷÷==÷÷==÷÷==÷÷==

लखनऊ के आज के हंसी मौसम को समर्पित चन्द अशआर
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भरी जेठ सावन सी बरसात हो गई।
लो मौसम में शुमार खुराफात हो गई।।
अच्छे भले थे जनाब,अभी कुछ देर पहले तक तो। 
बादलों की लगता,जमाने से नए मुलाकात हो गई।। मदहोशी इतनी बढ़ी,बस दो पैग में कसम से।
अपने भीतर उतर के,यारब से बात हो गई।।
बौछारें आ के भीतर तक,भिगोने लग गई हैं।
सूखे दरख़्तों को तो ये,बहारे सौगात हो गई।।
रूखे,चिड़चिड़े जो थे,वो भी आज खिले दिखे। 
आबोहवा बदलने से,गजब ये करामात हो गई।।
यूँ तो पीते नहीं रम,वोदका,व्हिस्की,"ओल्ड-मौन्क"। 
जबसे मथके दिल अपना पीने की शुरुआत हो गई।।
"उस्ताद" खुद को समझते थे बड़ा तुर्रम खां।
मगर कुदरत के आगे,लो सरेआम मात हो गई।।

@नलिनतारकेश

Wednesday, 9 June 2021

गजल-गजल:337 होकर आफताब भी

होकर आफताब* भी अंधेरे से गुजर रहा हूँ।* सूर्य 
मंजिल है दूर बहुत मेरी चल तो मगर रहा हूँ।।

हौंसला देता कोई नहीं बियाबान सन्नाटा है पसरा। 
वायदा किया था जो खुद से वो कहाँ मुकर रहा हूँ।।

रेत है,धूप है कड़ी,चलने को कतई तैयार पाँव नहीं। 
है ऐतबारे रूह कहीं ना कहीं सो सफर कर रहा हूँ।।

खुदा लेता है कड़ा इम्तहां ये सुना बहुत था।
पीठ पर उठा जख्म सारे उफ न कर रहा हूँ।।

"उस्ताद" बनाया है उसने तो हमें बड़ी सिफत* से।
* खासियत 
अंगारों पर चलते हर रोज फिर भी कहाँ मर रहा हूँ।।

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 8 June 2021

गजल-339: करने वाले ठहरे दाज्यू Gazal in kumouni

अडकस्सी करने वाले ठहरे दाज्यू
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बात तुम भी अडकस्सी* करने वाले ठहरे दाज्यू।
दो पैग बिना खुट** कहाँ बढ़ने वाले ठहरे दाज्यू।।
*अटपटी **पांव 
भल-नक् की समझ अब कहाँ ठहरी इन्हें जरा भी।
कुछ कहो तो ये और जो भड़कने वाले ठहरे दाज्यू।।

शहर जाने से तो इनकी नाक यहाँ फट्ट* चढ़ने वाली हुई।
टिटात** तो अब ऐशे में हमारे ही पड़ने वाले ठहरे दाज्यू।। 
* फौरन ** रोना-धोना
ईजा-बौज्यू* कां पूछड़ लाग रईं रत्तीभर कोई ले मेश**।
शैंड़ी*** हिसाबेल ये खुटन-खुट धरने वाले ठहरे दाज्यू।। 
*माँ-बाप  **आदमी  ***पत्नी
कतु छन लोग गाँव - गदेरन धें जरा हमनकें ले तुम बताओ।ऐसे में होली-दिवाली फिर हम कैसै मनाने वाले ठहरे दाज्यू।।

मैं तो "उस्ताद" कुणियूं* ये भले भौ जो रनकर** करोना ऐ गो।*कहता हूँ  **उलाहना देने में प्रयुक्त 
ननतर* ये बुद्धिजीबी गाँव,बुग्याल** कदर कहाँ करने वाले ठहरे दाज्यू।।* अन्यथा  ** घास का मैदान प्रकृति से जुड़ा

@नलिनतारकेश 

Monday, 7 June 2021

करो स्वीकार

नवल किशोर श्याम का होगा,देखो अनुपम आज श्रृंगार। 
भक्तिमति राधा स्वयं सज्ज हैं,करने कान्हा को तैयार।। 

माणिक,मोती,पन्ना,पुखराज नहीं, मात्र सुगंधित पुष्पहार।
कन्ठ त्रिवलय को करें सुशोभित, वैजयंती व पुष्पसार*।। 
*तुलसी की माला

बांकी छवि,पहन पीत परिधान,देखो आया दिव्य उभार।
कोटि-कोटि कामदेव लज्जित,शीश झुकाते तब बारंबार।।
 
नील-"नलिन" देह लगा के अंगराग,राधे रहीं मोहन निहार।
प्रेम प्रदर्शन अपना सकुचाते करके,देतीं फिर लीला विस्तार।।

हाथों की मेंहदी बिखेर रही,सर्वत्र ही अरूणाभ बहार।
अधरोष्ठ बाँसुरी,मृदुल ऊंगलियाँ गूंज रही रस-झंकार।।

मदिर-नैन सम्मोहित करके,तन-मन करते अचूक वार।
तीव्र कटाक्ष बचने को तब,राधा देती काजल की धार।।

श्रीचरणों में लगी महावर,बने भक्त-हृदय उपहार।
करुणामयी हैं राधारानी,करतीं पातकजन उद्धार।।

कृष्ण कहें अब राधे जी छोड़ो,काज शेष है पड़ा संसार। 
मैं रसिया बदनाम बड़ा हूँ,फिर कर्ण भेदती भक्त पुकार।।

राधारानी कहें अवश्य तुम जाओ,सुनो मगर बस एक मनुहार।
बड़ी प्रीत मेरी गूंथी ये "नलिन"-माल, कर लो हरि इसे स्वीकार।।

@नलिनतारकेश 
  

Saturday, 5 June 2021

बात- गजल-:336

गजल हो तो छोटे बहर* की हो।*मीटर/स्केल
बात मगर गहरे असर की हो।।
गैर के खतो-खिताबत* से वास्ता क्या?*चिठ्ठी-पत्री
बात बस खुद के तजुर्बे सफर की हो।। 
बात ही बात में तिल का ताड़ बने बात। 
सो गुफ़्तगू बस जज्बात के कदर की हो।।
जलेबी से छानने में माहिर है बात सभी।
कभी तो सदाकत* दिल के भीतर की हो।।*सत्यता
चाहत है "उस्ताद" अपनी तो बस यही।
बात हो तो ता-उम्र पाक-परवर* की हो।।*खुदा

@नलिनतारकेश 

Tuesday, 1 June 2021

जय बजरंगी

जेठ मंगल का श्री गणेश 
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

लखनपुरी आज दिखता है,सब जन उल्लास भारी।
शुभ जेठ मंगल की हो गई लो,यहाँ शुरूआत न्यारी।। 
प्रेम इस नगरी से विशेष करते हैं,अपने प्यारे बजरंगी।
पता है उन्हें कि,जन-जन यहाँ का,है मस्तमौला,तरंगी।। 
मीलों परिक्रमा,नंगे पांव लेटकर जेठ की भरी दुपहरी। 
परवाह करते नहीं मिलने को वृद्ध,बाल,किशोर,नारी।।
लगाते जाते जयकारा सभी,जय लाल लंगोट वाले तेरी। जगह-जगह मीठे शरबत से होती है उनकी खातिरदारी।। 
यूँ होता अब वृहद भंडारा जिसमें प्रसादी विविध रहती।
पवनपुत्र को तो अपने तृप्ति बेसन के लड्डू से मिलती।।
जाति-धर्म?वर्ण-भेद की सब,टूटती जंजीर रूढ़िवादी। 
भावयुक्त हो भक्त कहते,दे दो हमें दुःखों से आजादी।। भक्त-कातर अपने हनुमान त्वरित हरते सबकी विपत्ति। कौन सी है कहो तो भला उनके सम्मुख असंभव मनौती।। चलो भक्तों आओ करें प्रार्थना में अब एक पल न देरी। महामारी मिटा प्रभु करेंगे खुशहाली की अरदास पूरी।।

@नलिनतारकेश