हर हसीन चीज का वो तलबगार सही।
बेवफाई का मुझे है उसकी गिला नहीं।।
मुझसे बेहतर कोई उसे मिल गया होगा।
यही सोच के दिल को दिलाता हूं तसल्ली।।
जमाने का दस्तूर तो निभाना पड़ता है यारब।
चाहत हर दिल की कब किसकी हुई है पूरी।।
मैंने जब उसको अपना मान लिया है दिल से।
भला वो किसी और की अब कहो कैसे होगी।।
"उस्ताद" हर कोई यहां अपने ही साए में गुम हुआ।
फ़ुरसत किसी को कहां अब दिल लगाने की होती।।
नलिन"उस्ताद"
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