चलो माना तजुर्बा तेरा ही ज्यादा होगा।
सिक्का तो मगर यार उसका ही चलेगा।।
अंधे शहर में रोशनी किसे चाहिए भला।
हां मुफ्त का माल तो सबको ही पचेगा।।
बेवजह क्यों लगाते हो तोहमत बेचारे पर।
वो तो जिस काम को आया वो ही करेगा।।
कतरा-कतरा सींचा था लहू से वतन को।
अब आप बनकर जोंक वो चूसता रहेगा।।
भला क्यों नहीं बदनाम होंगें "उस्ताद" जी आप।
रकीब संग मिल शागिर्द जो इल्जाम मढ़ेगा।।
नलिन "उस्ताद"
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