राहे इश्क में रोड़े तो हज़ार मिले।
फिर भी कहां हम बेज़ार दिखे।।
हां जो चलते-चलते कभी थके तो।
कुछ देर को बस बैठ सुस्ता लिए।।
पेंचोखम तो उनकी जुल्फों में था।
हम तो यूं ही महज़ बदनाम हुए।।
बदनामी की किसे फिकर है आजकल।
मौका मिला बस उसूल दरकिनार किए।।
डगर कहां कब आसान रही ज़िन्दगी।
"उस्ताद" हो ज्यादा हम उलझ गए।।
नलिन "उस्ताद"
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