सिवा जफ़ा के मगर कुछ न पा सके।।
महफिल में उनकी हमारी पहुंच हो कहां।
बड़े बेआबरू वो चौखट से निकाल दिए।।
काले घने बादल तो घिरे उम्मीद बनकर ।
बरसने को मगर कौन उन्हें मजबूर करे।।
नूरानी चेहरा जेहन में आ जाता है उनका।
समझ न आए भुलाएं भला तो क्यों,कैसे।।
हर गली,हर शहर में चर्चा था उनका।
अपने ही घर "उस्ताद" अनजाने रहे।।
नलिन "उस्ताद"
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