इश्क किया कहां वो तो हमें बस हो गया।
मिलीं नजरों से नजरें दिल बेबस हो गया।।
हमने पढ़ा ही कहां,कब था इश्क का ककहरा।
एक मुलाकात में महज,ये उसका बस हो गया।।
दुनिया के सरोकार से मतलब कहां फिर रहा।
बादल सा बरसने,मचल ये तो पावस हो गया।।
अब तो उनकी ही निगाह में देख लेते हैं खुद को।
आईना देखें हुए तो जाने कितना बरस हो गया।।
यूं समझाया था,हज़ार बार "उस्ताद" इसे हमने।
इश्क के खेल में ये मगर,कतई परबस हो गया।।
नलिन "उस्ताद"
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