आख़िर दिल दिमाग तो होशो हवास में है आपका।।
कोई कभी तो खटखटा जाए मेरे घर का दरवाजा।
केवल यही सोच आनॅलाइन शापिंग हूं करने लगा।।
दोजख की आग में जल रहे हैं लोग अब खुद से।
अंजाम ये तो होना तय था नासमझ विकास का।।
एक बूंद पानी की कदर समझ लो बरख़ुरदार मेरे।
पड़ेगा वरना बेबस मछली सा रेत पर तड़फड़ाना।।
"उस्ताद" हमारा हुनर तो हमें बखूबी पता है जान लो।
ज़िद पर उतरें तो सच में तब्दील होता है हरेक सपना।।
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