Monday 10 June 2024

६२४: ग़ज़ल : रिमझिम बरसात में

वो मुस्कुरा तो रहा है मेरी हरेक बात में।
क्या मान लूं प्यार है उसके जज़्बात में।।

जेठ की दोपहरी जब वो आया मेरे सामने।
पूनम का चांद निकला जैसे आधी रात में।।

ज़मीं-आसमां का फर्क है जान लीजिए।
उसकी तस्वीर और रूबरू मुलाक़ात में।।

कौन है भला जो पा सका साहिल से मोती।
डूबना पड़े है गहरे यूं मिलती नहीं खैरात में।।

एक उम्र होती है लड़कपन की "उस्ताद" जी।
कागज की नाव तैरती है रिमझिम बरसात में।। 

नलिन "उस्ताद"

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