पेंचोखम जुल्फ के हजार सुलझाऊं भला कैसे।
नजरें बता उसके नूर पर टिकाऊं भला कैसे।।
सजी है मेरे सरकार के मेहंदी चटक लाल। मरमरी* हाथों को उन चूम पाऊं भला कैसे।।
*कोमल
जाने कितनी मुद्दत बाद नसीब खुले हैं ।
गवां मौका ये काम चलाऊं भला कैसे।।
तसव्वुर* हजार जो संजोए थे इंद्रधनुषी।
हर रंग छाए कायनात बताऊं भला कैसे।।
*कल्पना
सफर में चलते गर्म रेत पर बस छालों के निशान थे।
पहना सकूं सिसकते कदमों को खड़ाऊं भला कैसे।।
पत्ता-पत्ता,बूटा-बूटा अटा पड़ा है उसकी रहमत से।
तौफीक*ये परवरदिगार की"उस्ताद"कमाऊं भला कैसे।।*ईशकृपा
@नलिन #उस्ताद
आज़म खान एक मूर्ख है। मूर्ति केवल 30 फीट लंबा और 40 फीट ऊंची होनी चाहिए - और 2 करोड़ से भी कम लागत होनी चाहिए।
ReplyDeleteयदि लागत अधिक है, तो इसे पूर्वांचल और विदर्भ के 500 किसानों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।