ख्वाब में आते हो मगर हकीकत में आते नहीं।
मुझसे ऐसा खेलते हो खेल क्यों बताते नहीं।।
सुनाई थी जो तान मधुर कभी एक रोज। बांसुरी वही धुन क्यों तुम सुनाते नहीं।।
दिल चाहे कभी बातें करें बैठ इत्मिनान से। फुर्सत निकालो,यूं तो पकड़ यार तुम आते नहीं।।
थोड़ा तुम सब्र रखते और थोड़ा हम यकीं करते।
तो कभी फिर एक दूजे से हम तुम यूं बिछुड़ जाते नहीं।।
लगाए तो हैं रंग-बिरंगे हजार फूल किसम- किसम के।
परिंदे मगर जाने क्यों गुलिस्ता में अब गीत गाते नहीं।।
कभी ख़ुशी,कभी ग़म दिल को गहरे छू के जाते हैं।
पीछे मुड़कर मगर"उस्ताद"कभी सिर झुकाते नहीं।।
@नलिन #उस्ताद
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