बांहों में भींच सीने से लगाया उसने।
ये दिले-बंजर मेरा लहलहाया उसने।।
जेहन में उसको अपने बसा कर।
वजूद अपना ही भुलाया उसने।।
अंधेरी स्याह रात मिली थी वो उसे।
चौदहवीं की रात मगर बताया उसने।।
ददॆ बांटना था तो नजदीक चला जाता।
दूर से पर पूछ कर जख्म बढाया उसने।।
वो जाने कितना वाहियात है "उस्ताद"।
तकलीफ देकर ठहाका लगाया उसने।।
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