हकायक* के आफताब पर,बादल छाए कुछ देर को।*सच्चाई
देखो खुद ही जल गए सभी,ठहर कहां मगर पाए कुछ देर को।।
हर्फ* दर हर्फ वो दर्द से भरता आ रहा पन्ना। सुकून लेकिन उसे जरा भी ना आए कुछ देर को।।*शब्द
मोहब्बत से ये दिल सरसार* है बेइंतहा उनके लिए।
बता दुंगा तफसील से वो जो मिलने आए कुछ देर को।।*डूबा हुआ
हर एक शय में है दिखती उसकी नायाब
कारीगरी।
आओ परस्तिश*कर उसे हम भी रिझाएं कुछ देर को।।*पूजा
अजब-गजब हर सांस बड़ी कशमकश है जिंदगी।
कभी रुलाए हमें तो कभी हंसाए कुछ देर को।
"उस्ताद" बना सकता है हर एक पत्थर को हीरा।
एतबार जो भीतर शागिदॆ भर पाए कुछ देर को।।
@नलिन #उस्ताद
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