देख-सुन रामलीला,रावण की लीला करने लगे।
जलानी थी हमको लंका,अयोध्या पर भिड़ने लगे।।
शाम होते ही जुट जाते थे बच्चे लीला के वास्ते।
अब तो सबके हाथ मगर चैटिंग ही व्यस्त रहने लगे।।
शूर्पणखा के नाक-कान कहां काट पाए बिचारे लखन।
बचा-बहुत वो अपनी धोती,जैसे-तैसे भागने लगे।।
विदेह जनकराज जो बता खुद को पुजवा रहे थे।
अखबार उनके किस्से सुर्खियों में बेचने लगे।।
भाई से भाई लड़ रहे जब छोटी छोटी बात पर।
भरत से अजीज भाई भला यहां क्यों जन्मने लगे।।
राम से मतलब है ना मतलब देवी दुर्गा से।
धन्धों की तरह अब हर जगह पंडाल सजने लगे।।
मर्यादा जाने किस युग की बात हो गई अब तो।
अब तो अपने-अपने राम को सब मारने लगे।।
शबरी के गम में"उस्ताद"खरबों जमा कर लिए।
मरी हुई फिर लाश पर उसकी,रोटी सेकने लगे।।
@नलिन #उस्ताद
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