Tuesday 4 September 2018

जन्नत की हकीकत से वाबस्ता* रहा हूं

जन्नत की हकीकत से वाबस्ता* रहा हूं।
इंद्र दरबार से तभी तो बचता रहा हूं।।
*जुड़ाव रखना

रूहानी शायरी के अदीब* ना जाने कहां गए। उनकी ही विरासत बमुश्किल गुनगुनाता रहा हूं।। *साहित्यकार

सलीका आ जाए किसी तरह जीने का जिंदगी।
राखी चिता की अपने माथे लगाता रहा हूं।।

हर तरफ शोर बरपा है तन्हाईयों का मेरी। बदौलत उसी के हर दिन नया कुछ लिखता रहा हूं।।

बहुत कुछ गीली लकड़ी सा दिल में जलता रहा।
धुंए से जज्बात अक्सर तभी उगलता रहा हूं।।

दर्द-ए-सैलाब से लोगों को बचाने के वास्ते। जख्म पर ग़ज़ल मरहम सी"उस्ताद"लगाता रहा हूं।।

@नलिन #उस्ताद

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