चाहता यही हूॅ मासूमियत बरकरार रहे तेरी। गिद्धों के शहर में भी खूब लंबी उम्र रहे तेरी।।
तूफां से करना इसरार* मंजिलों को चूमने से पहले।*निवेदन
तबियत मुसीबतों से खेलने की जवां यूं ही रही तेरी।।
मुफलिसी में रहे,तंगहाल या दर्द में कभी तू।
आदत देखने की हंसी सपने बनी रही तेरी।।
बाज़ार तो भटकाता है हर राहगीर को यहां से वहां।
अच्छा होगा सो खुली हो कर भी बंद नजरें रहें तेरी।।
दुआ है फले-फूले खूब दौलत की मुराद तेरी।
कुछ डालियाॅ मगर चौखट के बाहर भी रहें तेरी।।
सोच बदलती है तो बदले"उस्ताद"जमाने भर की।
सलामत यूं ही लेकिन फितरत फकीराना रहे तेरी।।
@नलिन #उस्ताद
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