एक अलग सी ग़ज़ल (हास्य-व्यंग भरी)
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पिछले जन्म से हजामत बना रहा हूं।
तभी तो आजकल गजलें जना रहा हूं।।
ऐसे तो भड़ास दिल की निकलती नहीं।
झिलाने* की खातिर शेर बना रहा हूं।।
*परेशां करने की खातिर
दाढ़ी में तिनका(चोर होना)फैशन हुआ है जब से।
किसी तरह पेट में दाढ़ी(धूतॆ प्राणी)सना रहा हूं।।
बात-बेबात अक्सर रूठ जाता है दिल मेरा।
बस दे किसी तरह झुनझुना इसको मना रहा हूं।।
दिल में ना लेना कभी बातों को मेरी।
दरअसल बेवकूफ तुमको बना रहा हूं।।
छंटा-छंटाया ही बनता है "उस्ताद" आजकल।
सो चेलों पर अपने घूंसे दनदना रहा हूं।।
@नलिन #उस्ताद
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