हाथ में लकीरें अब दो रह गईं।
इश्क और नसीब बस दो रह गईं।।
भरी झोली उसने हम सबकी।
मगर कुछ मुरादें तो रह गईं।
दिल से दिल के दरमियान दूरियां।
सुलझाते हुए भी कुछ तो रह गईं।।
कहने को तो कह दिया सब कुछ।
लो असल बात तो रह गई।
अब कहां सुधरेंगे बिगड़े नवाब।
जिंदगी ही जब घड़ी दो रह गई।।
अमलदारी*उसकी हर दौर खूब बढी।
पर उमर-ओ-अक्ल की भेंट तो रह गई।।
*सत्तासुख
प्यार तो"उस्ताद"यूॅ सब से मिलता रहा।
थोड़ी गिला-शिकवा अपनों से तो रह गई।।
@नलिन #उस्ताद
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