हर जगह इतनी भीड़ हो गई।
सड़क ही लगता नींड़* हो गई।।*घौंसला
अब तो दिखता नहीं कोई आदमी।
सीधी जिसकी बाकी रीढ हो गई।।
दर्द जब कभी हद से बढ़ा।
दिलो-दिमाग मींड़* हो गई।।
*गूंधना/मसलना
बाहर कहां झांकने की फुरसत।
खुद में ही जबसे भीड़ हो गई।।
"उस्ताद" आशिकी उसकी
जिंदगी की एड़* हो गई।।
*kick/ घोड़े को भगाने के लिए एड़ मारना।
@नलिन #उस्ताद
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