प्यार मेरा जब से मजहब हो गया।
रब मेरा हमसफर सुबू-शब* हो गया।।*सुबह-रात
दाद जो मिल गई गजलों पर उसकी।
इजहार-ए-जज्बात सवाब* हो गया।।*पुण्य
माटी का आंचल जो रौंदा था हमने खुद से।
सो कुदरत का कहर आज अजब हो गया।।
बुझी महफिल में वो आ गया बेनकाब तो ।
देखा जो उसका नूर तो गजब हो गया।।
संवारता रब पेशानी की लकीरें जिसकी। खुशनुमा मुस्तकबिल*उसका सबब* हो गया।।*भविष्य *कारण
हुआ जो"उस्ताद"पर"सकते का आलम"*। *समाधि की अवस्था
आज वो बैठे-बिठाए आप ही रब हो गया।।
@नलिन #उस्ताद
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