है होश हमको उनकी नादानियों का।
करते पर चर्चा नहीं नादानियों का।।
आशिक को तो चाहिए बहाना तारीफ का। खुली या बंद जुल्फों की आशनाईयों का।।
करोगे अगर कत्ल-ओ-गारत सरेआम चौराहों पर।
रब भी देगा नसीहत भेज अनीकिनी(फौज) सुनामियों का।।
बात-बेबात करता बेवजह कमर के नीचे पेशदस्ती(आक्रमण)।
जम्हूरियत(प्रजातंत्र)में करें क्या बदसलूकी भरी मुखालिफों(शत्रुता)का।।
कुदरत के पास बैठ कभी थोड़ा सा इत्मिनान निकालकर।
लुत्फ तो जरा उठाइए हुजूर बिखरी हुई रानाइयों(सुंदरता)का।।
हर कोई गुमशुदा है जब अपने ही में सिमट कर।
"उस्ताद" करे जिक्र किससे अपनी तन्हाईयों का।।
@नलिन #उस्ताद
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