दिल की बात सुनने में तो अच्छी है हुजूर। गुजरगाह* मगर इसकी कठिन बड़ी है हुजूर।।*राह
दूसरों की नुकताचीनी बहुत हो गई।
निगाह अपनी पढ़ना जरूरी है हुजूर।।
वो आए कब और कब आशियां बना लिया। दिल-ए-कमबख्त की खबर हमें नहीं है हुजूर।।
पीले पत्ते की मानिंद झड़ ही जाना है डाल से।
जरा सोचिए कहा ये शानोशौकत रहनी है हुजूर।।
आंखों में रात काजल लगा चहकते हो भला क्यों।
जानते-बूझते शहर का मिजाज कुछ ठीक नहीं है हुजूर।।
लेने को बलैया बेचैन हैं "उस्ताद "सब।
क्या गजब की उस्तादी आपकी है हुजूर।।
@नलिन #उस्ताद
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