लौ लगी जब कृष्ण से प्रीत की जग से अब कैसे निभे।
प्रति सांस अब तो हर घड़ी कृष्ण बिन शूल सी मुझे चुभे।।
कृष्ण रस में हो बांवला मैं नाचता फिर रहा। वो बड़ा नटखट मगर इम्तहान मेरा ले रहा।।
प्रतिबिम्ब जब भी कभी स्वयं का दर्पण में हूं निहारता।
देख कभी रूप राधा तो कभी मीरा का हूं अचकचाता।।
देह का भान कहां है अलग ही अगन भीतर लग रही।
वो मिले तो अंग-लगूं बस मुझे ये ही लगन हो रही।।
रूप उसका मृदुल"नलिन"सा झील सी आंख मेरी बसा।
वो करता अठखेलियां नित नई दिल मेरा अब उसमें बसा।।
@नलिन #तारकेश
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