खुद पर ही अख्तियार अपना अब जब रहा नहीं मेरे पास।
कैसे कहूं उससे जो बैठता नहीं दो घड़ी मेरे पास।।
बहुत कुछ ले गया वक्त मुझसे बिना पूछे जनाब।
गनीमत है यादों की बारात रही मेरे पास।।
जो पहुंच ही ना सके कभी जिसके लिए थे चुने दिल से।
हैं रूठे हफॆ,कुछ रूखे फूल आज भी मेरे पास।।
ख्वाबों के जगमगाते दीप रखता हूं रौशन हर हाल में।
मलाल,गम,तन्हाई तभी तो आते नहीं कभी मेरे पास।।
जो है अगर वो कहीं का सुल्तान,नामदार तो हुआ करे।
आता है उठने को गतॆ से हर"उस्ताद"भी मेरे पास।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment