स्वर्णिम नवयुग की निकट अब पदचाप सुनाई दे रही।
रचनात्मकता भरे दृढ नव-सृजन की नींव भरी जा रही।।
यद्यपि तिमिराच्छादित है दिख रहा आज भी गगन सारा। संकल्पित हृदय किन्तु विश्वासकी एक किरण दिख रही।।
महामारी का लोमहर्षक परिणाम दावानल सा ग्रस रहा। विकट परिस्थितियों के विपरीत भी राष्ट्र कीर्ति बढ़ रही।।
स्वर्ग सा भूभाग कश्मीर हमारा 370बेड़ियों से मुक्त हुआ।
वहीं स्त्रियां एकजुट हो हक हेतुअपने प्रतिबद्ध दिख रहीं।
सड़क,बिजली,शौच,आवासकी प्राथमिक आवश्यकताएं।
विकास-परिभाषा केअनुरूप मापदंडों पर खरी उतर रहीं।
राष्ट्र-सेवा में समर्पित रहे हैं तन-मन से जांबाज प्रहरी सदा हमारे।
खेल-खिलाड़ी,युवा स्पंदित इन सबके हौंसलों की पहचान हो रही।।
यूँ तो हैं कुछ स्वार्थी,लंपट,लालची,संपोले अभी आस्तीन में छिपे।
परवाह लेकिन है किसे जब जनता-जनार्दन एकमत हो रही।।
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