सावन में युगल सरकार की लीला
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लो सावन के बदरा इतराते,झूमते आ गए।
हरे-हरे दरख़्तों की शाख पर झूले आ गए।।
सखियों संग राधा लली जो आए झूलने को।
श्रीकृष्ण भी ग्वाल-बाल संग मटकते आ गए।।
धमाचौकड़ी तो मचनी तय थी अब बाग में भक्तों।
नजारे ये लूटने पशु-पक्षी भी बहुतायत में आ गए।।
श्यामसुंदर प्रभु तो सदा के निराले-रंगीले हैं हमारे।
अधरों पर धरी बाँसुरी तो सुर-सुरीले सारे आ गए।।
राग-रागिनीयों ने अद्भुत बड़ा ही माहौल रच दिया।
देव,यक्ष,किन्नर श्रवणानंद लेने प्रफुल्लित आ गए।।
मंत्रमुग्ध,मदहोश,मृगनैनी राधाजी हुईं सांवरे को देखके।
प्रीत का बिछाते जाल जब छबीले बड़े सरकार आ गए।।
बंसी और नूपुर की चली जुगलबंदी उल्लासमई रात भर। सुध-बुध बिसारे सभी पौ-फटी तो"नलिन"होश में आ गए।
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