Thursday 5 August 2021

कविता: सावन में युगल सरकार की लीला

सावन में युगल सरकार की लीला
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लो सावन के बदरा इतराते,झूमते आ गए।
हरे-हरे दरख़्तों की शाख पर झूले आ गए।।

सखियों संग राधा लली जो आए झूलने को। 
श्रीकृष्ण भी ग्वाल-बाल संग मटकते आ गए।।

धमाचौकड़ी तो मचनी तय थी अब बाग में भक्तों।
नजारे ये लूटने पशु-पक्षी भी बहुतायत में आ गए।।

श्यामसुंदर प्रभु तो सदा के निराले-रंगीले हैं हमारे।
अधरों पर धरी बाँसुरी तो सुर-सुरीले सारे आ गए।।

राग-रागिनीयों ने अद्भुत बड़ा ही माहौल रच दिया।
देव,यक्ष,किन्नर श्रवणानंद लेने प्रफुल्लित आ गए।।

मंत्रमुग्ध,मदहोश,मृगनैनी राधाजी हुईं सांवरे को देखके। 
प्रीत का बिछाते जाल जब छबीले बड़े सरकार आ गए।। 

बंसी और नूपुर की चली जुगलबंदी उल्लासमई रात भर। सुध-बुध बिसारे सभी पौ-फटी तो"नलिन"होश में आ गए।

@नलिनतारकेश 

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