दर्द मेरे तन्हा छोड़ कर तू मुझको कहीं जाना नहीं।
तब तलक जब तक तू ही बन जाए मेरी दवा नहीं।।
यूँ तो होश मुझको अब कतई कुछ रहता नहीं सच में।
हो एहसासे बेहोशी भी मगर ये यार मैं हूँ चाहता नहीं।।
आकाश के सितारे पढ़ नजूमी* बताते तो हैं मुस्तकबिल।
बहार है या छाई पतझड़ फर्क मुझे अब तो पड़ता नहीं।।
*ज्योतिषाचार्य
हलक में अटक जाती हैं कभी-कभी अपनी ही नादानियां।
उगलते और ना ही निगलते हमसे तब कतई बनता नहीं।।
कूवत भी कुछ तो होनी चाहिए असर तब दिखता है जनाब।
वर्ना नाम रखने से महज "उस्ताद" तवज्जो कोई देता नहीं।।
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