Thursday 19 August 2021

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा- यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे

ज्योतिष पर संक्षिप्त चर्चा : यद् पिण्डे तद् ब्रम्हांडे
##############ॐ###########

ज्योतिष जैसा सर्वविदित है एक विशिष्ट विज्ञान है जिसे अधिकांश लोग अब इसके वास्तविक रूप में पुनः से मान्यता देने लगे हैं अतः यह अपनी लोकप्रियता के शिखर पर विराजमान होने को प्रस्तुत दिख रहा है।ज्योतिष विद्या का मूल उद्देश्य यही रहा है कि हम ईश्वर कृपा से प्राप्त मानव-देह को उसके उच्चतम लक्ष्य तक न्यूनतम अवरोधों के साथ सहजता से आगे लेकर चल सकें। लेकिन अपने लगभग साढ़े तीन दशकों की इसके साथ की गई यात्रा में मुझे लगा है कि हम दैनिक जीवन की आपाधापी के निवारण हेतु ही इसकी शरण में आते हैं।अर्थात मेरा व्यवसाय क्या/कब होगा?विवाह कैसा होगा?धन-लाभ,मकान,वाहन आदि।बहुत ही विरले मुझे ऐसे मिले हैं जो आध्यात्मिक या सीधे शब्दों में कहें अपने "स्व की वास्तविक संतुष्टि" के लिए जिज्ञासु होते हैं।हम नियमित एक मशीन की तरह घन्टी,शंख बजाकर कुछ पवित्र स्त्रोत,चालीसाओं का पाठ करके ही इतिश्री कर लेते हैं और समझते हैं हमने ईश्वर को भी संतुष्ट कर दिया। जबकि दैनिक जीवन की उपलब्धियों हेतु हम
24×7 अत्यधिक प्रयासरत रहते हैं,जी-तोड़ मेहनत करते हैं।
इसके साथ ही आजकल एक अन्य ट्रेंड भी इस विधा में देखने में आ रहा है और वह है "नवग्रहों के सर्वांग उपचार का  आकर्षण"। इसमें लोगों की प्रायः धारणा रहती है कि वह प्रत्येक ग्रह को अपने अनुकूल कर सकते हैं और फिर हर प्रकार से सुख-सुविधा युक्त,भोग-विलास पूर्ण जीवन यापन कर सकेंगे। कुछ महीन ज्योतिषी ऐसे लोगों की इस अवधारणा को पुष्ट करते हुए अपना उल्लू सीधा करते हुए देखे जा सकते हैं।और इधर तो एक दो दशकों से यह बाजार बहुत विकसित हुआ है।अपने क्लाइंट के हर संभव,असंभव कार्य को कुछ छोटे-मोटे उपचार/टोटकों/ वास्तु आदि से नियंत्रित करने का दम भरते हुए सफलता की गारंटी देना और असफल होने पर भी कुछ अपनी चूक स्वीकार न कर नाटकीय रूप में किसी अन्य पर दोष मढ़ना या सफाई देना आजकल बहुत दिख रहा है।सांसारिक कामनाओं से पीड़ित जिज्ञासु येन-केन प्रकारेण सिद्धि चाहता है।उसे ग्रहों की आंतरिक स्थिति/पृष्ठभूमि को समझने का होश या समय ही कहाँ ? ऐसे में स्वाभाविक रूप से ज्योतिष विद्या के आधारभूत तत्व उनकी वैज्ञानिकता, उसका जातक के समग्र जीवन पर पड़ने वाले असर की सटीक व्याख्या को समझने की गंभीरता या सब्र दिखाई दे भी तो दिखे कैसे?
अपने इस संक्षिप्त लेख को जिसमें कई अंतर्निहित प्रश्न हैं एक उदाहरण के साथ समाप्त करना चाहूंगा क्योंकि अन्यथा तो यह एक डिटेल और दीर्घकालीन प्रक्रिया होगी, ज्योतिष के महासागर में।यदि समय और मन की सुईयां एक साथ फिर हुईं (जिसका प्रयास रहेगा)तो कुछ ऐसे प्रश्नों के पत्थरों को जोड़कर सेतु बनाने की प्रक्रिया चलेगी।जिससे एक संकरी ही सही पगडंडी कुछ दूर तक जाने का हौसला दे सके।अस्तु।
तो उदाहरण है कि यदि किसी व्यक्ति के सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु आदि नवग्रहों में से कोई ग्रह अनिष्टकारी होने का संकेत देते हैं तो हम उस ग्रह से संबंधित दान, जाप, पूजन,हवन आदि करते हैं। एक रूप में यह प्रक्रिया ठीक भी है और प्रायः इसके अच्छे परिणाम देखने को भी मिलते हैं।लेकिन मुझे लगता है हमें और गहरे जाने/पैठने की जरूरत है। ग्रहों के साथ बेहतर तादात्म्य बैठा कर अपने समग्र व्यक्तित्व का पूरी स्पष्टता व निर्भीकता के साथ आकलन की आवश्यकता है। जिससे हम एक स्वस्थ,सफल एवं पूर्ण समर्पित जीवन अपने उच्च लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निकाल सकें। हमारे शास्त्रों में बहुत स्पष्टता से एक छोटे से वाक्य में कहा है: "यद् पिण्डे तद् ब्रह्मांडे"।अर्थात हम ब्रह्मांड के अंग हैं और ब्रह्मांड हमारे ही भीतर समाहित है। तो नवग्रह इससे छूटे हुए कहाँ। तो यदि हमें अपने ग्रहों को ठीक करना हो तो उनकी ऊर्जा को संतुलित रूप में उपयोग करना होगा (अपनी शक्ति,सामर्थ्य अनुसार )। इसके लिए हमें ग्रहों के चरित्र को बारीकी से समझना होगा।फिर ग्रह ही अकेले क्यों?राशि,नक्षत्र,तिथि,पक्ष (शुक्ल/ कृष्ण)सभी को अलग-अलग और उनके मिश्रित प्रभाव के साथ भी पढ़ना होगा,तभी हम कुछ ज्योतिष के महासागर से माणिक,मुक्ता आदि बहुमूल्य रत्न निकाल पाएंगे। वरना तो किनारे खड़े हो एक-आद लहरों का ही स्पर्श पा सकेंगे।यह जल्दबाजी का सौदा नहीं है इस सबके लिए गहरे धैर्य और विश्वास की जरूरत है।जैसा सांई की प्रार्थना का मूल भाव भी है।श्रद्धा-सबुरी।वैसा ही कुछ-कुछ।
अब जैसे हम मान लें कि हमारी जन्मपत्रिका में सूर्य ग्रह (किन्हीं कारणों से) पीड़ित है तो बहुत स्थूल तौर पर समझें तो सूर्य ग्रह हमारी आत्मा,पिता,गौरव/अभिमान(पीड़ित अवस्था में अभिमान),नेत्र विशेषतः दायीं जैसी कुछ बातों का प्रतिनिधित्व करता है तो ऐसे में यदि हम दान,जाप आदि करते हैं तो ठीक है। लेकिन यदि हम अपने पिता के साथ संबंधों में किसी प्रकार का दुराग्रह रखते हैं या फिर  अपने अभिमान को पालते हैं तो सूर्यदेव आपके प्रति उतने अधिक कल्याणकारी नहीं हो सकते।फिर चाहे आप जितना ब्राह्मण से जप,तप, करवा लें या दान देते रहें।इसका सीधा सा तात्पर्य यह है कि हमें अपने ग्रहों को पुष्ट व शुभ फलदायक बनाने हेतु उनकी मूलभूत प्रकृति के अनुरूप अपनी जीवनशैली को भी सुधारना होगा तभी बात बनेगी अन्यथा नहीं।यही सर्वाधिक ध्यान देने योग्य बात है। कम्रशः

नोट : एक लम्बे अन्तराल पश्चात पुनः ज्योतिष विषय पर लिख  रहा हूँ यदि पाठकों को अच्छा लगेगा तो आगे भी लिखने हेतु ईश्वर की कृपा और आपका स्नेह चाहूंगा।धन्यवाद।
@नलिनतारकेश
astrokavitarkesh.blogspot.com

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